२. चावल पकानेकी अनन्त विधियाँ
भूखा न रहना पडे इस गॅरंटीका सबसे पहला सरल पाठ यही है कि चावल पकाना सीख लो। चावल पकाने भरमें भला क्या विभिन्नता हो सकती है? इसमें सीखने लायक क्या है? लेकिन है।
कामकाजी गृहिणीके लिए सबसे आसान है प्रेशर कुकरका सहारा लेना। प्रेशर कुकरमें चावल पकानेके लिए पानीका अनुपात ठीक ठीक रखना आवश्यक है। साधारणतया जितनी कटोरी चावल हो उसके अढाई गुना पानी डाला जाता है। चावल पुराना हो तो आधी कटोरी और। स्वास्थके लिये एक वर्ष पुराना चावल अच्छा होता है। सर्वमान्य और सबसे आसान तरीका यही है। लेकिन यदि साधारण बरतनमें चावल पकाना हो तो बरतन पतला न हो क्योंकि उसमें चावल जल जाता है।
थोडी देर भिगोये हुए चावल ज्यादा अच्छे पकते हैं। उबलते पानीमें चावल छोडनेसे वे अच्छे पकते है। आँच जितनी मंद हो, स्वाद उतना अधिक आता है। बरतनपर ढक्कन रखनेसे चावल उफन जाता है, इसलिए चावल पूरी तरह ढँकनेके बजाय थोडा खुला छोड दें। ढकनेके लिए ऊपर रखी थालीमें थोडा पानी रखें। इससे चावल उफननेकी गति मंद हो जाती है और चावलमें पानी कम पड रहा हो तो बादमें यही गरम पानी डाला जा सकता है।
किसीने घासफूस जलाकर सुबहसे शामतक धीमी आँचपर पकाये चावलके बेहतरीन स्वादका मुझसे जिक्र किया है। सोलर कुकरके चावलका भी आपना अपना स्वाद होता है। मुझे खुद उपलेकी आगमें पके चावल, खासकर उसमें उपलेके धुएँकी थोडीसी सुगंध मिली हो तो बहुत पसंद है। मिट्टीके बरतनमें पके चावलकी अपनी ही सुगंध होती है। पुरीमें जगन्नाथजीकी रथयात्राके समय मिलनेवाला चावलका खास प्रसाद इसी तरह मिट्टीके बरतनमें पकाया जाता है।
गरम गरम चावलको केलेके कोमल पत्तोंपर परोसें तो उन पत्तोंकी भीनी खुशबूका आनंद ले सकते हैं। हम बचपनमें कहते थे - देखो, देखो, हम क्लोरोफिल खा रहे है। केलेके पत्तेका स्वाद जिसमें उतरा हो, उस चावलको खानेसे हिमोग्लोबिन बढता है ऐसा आयुर्वेदका वचन है।
पकनेपर चावलका एक एक दाना अलग हो इसके लिए चावलको पहले घीमें भून लेनेका चलन भी है। मेहमाननवाजीके लिए यही अच्छा तरीका है जो हॉटेल्समे भी प्रायः अपनाया जाता है। इसमें चावलके कच्चे रहनेकी संभावना भी कम हो जाती है। किसी नौसिखिएके लिये घीभुना चावल पकाना अधिक आसान है।
गरमागरम चावलको बिना कुछ भी मिलाये खानेका अपनाही स्वाद होता है। इसी तरह ठंडे चावल भी आरामसे चबाकर खानेपर स्वादिष्ट हो जाते हैं। घी मिलाओ तो अलग स्वाद और नमक मिलाकर खाओ तो और भी अलग।
चावल का साधारण अर्थ अरवा चावल (milled rice) ही माना जाता है। लेकिन भारतके कई हिस्सोंमे एक अलग किस्मका चावल खाया जाता है जिसे मोटा चावल या उसना चावल कहते हैं। इसे पानीकी अधिक मात्रामें पकाकर उससे माड छान लेते हैं। गरीबीमें माडको ही नमक इत्यादिके साथ लोग खा लेते हैं। आसाम, बंगाल, बिहार, ओरिसाके अलावा केरलमें और महाराष्ट्रके पश्चिमी घाटके कुछ हिस्सोंमे यही चावल खानेका रिवाज है। आंध्र प्रदेश, ओरिसाके आदिवासी इलाकोंमे या जिन इलाकोंमें अत्यधिक गरीबी है वहाँ इस चावलकी कांजी बनाकर पीनेका चलन है ताकि कम चावल ज्यादा दिनोंतक भूख मिटाते रहें।
बासी चावलमें दूसरे दिन प्याजका छौंक लगाकर भी खाया जाता है जो अपने आपमें एक नई डिश हो जाती है। बीमार व्यक्तीके लिए पतला भात बनता है। इसमें साधरणसे डेढ या दुगुना पानी डालकर साथमें थोडा घी, जीरा, अजवाईन, नमक डालते हैं और पतला ही खाते हैं।
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बासी चावलमें दूसरे दिन प्याजका छौंक लगाकर भी खाया जाता है जो अपने आपमें एक नई डिश हो जाती है। बीमार व्यक्तीके लिए पतला भात बनता है। इसमें साधरणसे डेढ या दुगुना पानी डालकर साथमें थोडा घी, जीरा, अजवाईन, नमक डालते हैं और पतला ही खाते हैं।
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