बुधवार, 5 जून 2013

७ तुलसी व अन्य सुगंध

    तुलसी व अन्य सुगंध

 मैंने अक्सर तुलसीके स्वाद और सुगंधका प्रयोग मिठाइयोंमें किया है। गरम पकवान, जैसे खीर, सूजीका हलुवा, लडू बननेसे पहले बना हुआ गरम मिश्रण आदि पर पाँच - छँह तुलसीके पत्ते रखकर उसे मैं ढक देती हूँ। दस-पंद्रह मिनटके बाद वे पत्ते निकाल देती हूँ। यह अनोखा स्वाद खानेवालेको अचानक आनन्द दे जाता है।

    तुलसीकी ही तरह मैंने गेंदेके पत्तोंका भी इस्तेमाल किया और पसंद किया। लेकिन अधिकतर किसीको यह पसंद नही आया।

    केशर -- पकवान मसालोंमे सर्वोत्तम माना जाता है केशर। इसे हर पकवानमें डाला जा सकता है। यहाँ तक कि आइस्क्रीम, पानमसाला आदिमें भी।

    आधे चम्मच गरम दूधमें केशरको अच्छी तरह घोलकर फिर पकवानमें डालनेसे वह अच्छी तरह फैलता है। वर्ना कभी कभी इसकी कतली रह जाये तो थोडा कसैला स्वाद उत्पन्न करती है।

    केशर के कारण पकवानोंमें केवल स्वाद और सुगंध बल्कि अच्छा रंग भी जाता है। उसकी तुलनामें बनावटी रंग कहाँ टिकता हैं? हालांकि कई कंपनियाँ खानेके लायक बनावटी रंग बनाती हैं। फिर भी मैं उनका उपयोग हरगिज नही करती।

    काजूबदाम, पिस्ता, चिरौंजी और खरबूज आदिके बीज- इन्हें भी कई तरहके पकवानोंमें डाल सकते हैं। बादामको रातभर भीगोंकर अगले दिन छिलका उतारकर छोटे-छोटे टुकडे करके डाला जाता है। जब रातभर भिगोनेका समय मिले तो आधे घंटेतक गरम पानीमें रखकर काम चला सकते हैं।

    किशमिश और काले मनुके -- घीवाली मिठाई हो तो इन्हें घीमें थोडा भून लेनेपर अलग स्वाद है। किशमिश और काले मनुके खीर, मीठे चावल आदिके लिए घीमें भूनकर या साधारण तरीकेसे भी डाले जा सकते हैं। आजकल बाजारमें जो किशमिशके पॅकेट मिलते है, उसमें अंगूरोंको सुखानेके लिए अधिक सल्फरका प्रयोग किया जाता है। ऐसे किशमिश फायदेकी बजाय सेहतका नुकसान करते हैं और दूध कई बार फट जाता है। किशमिशको घी में भून लेनेका एक फायदा यह भी हैकि फिर इससे दूध नहीं फटता।

    खजूर- खजूरसे भी पकवानमें गजबका स्वाद आता है। इसे बिल्कुल थोडे पानीमें आधा घंटा भिगोकर इसका पतला छिलका तथा बीज निकाल दिया जाता है। फिर इसे एक दो घंटे दूधमें भिगोकर दूधवाले पकवानमें डालते है। घीमें भूनकर यह अपने आपमें ही एक स्वीट डिश बन जाता है। इस तरह भूनें खजूरको मैंने कई बार हलुएके साथ परोसा और खाया है।

    चाट मसालेकी कोई चटनी हो, उसमें खजूर और इमलीके बगैर स्वाद नही आता है।

    छुहारा- हर तरहकी खीरमें छुहारेके पतले - पतले कतरे काटकर डाले जा सकते हैं। इसे सुपारी कतरनेवाली करौंतीसे कतरना चाहिये, या फिर छुरी से। खाना खा लनेके बाद एक छुहारा खा लेनेसे अन्नके पचनेमें बडी मदद मिलती है। प्रसूतीके बाद शरीरको पुष्टी मिले लेकिन मेद ना बढे इसके लिए छुहारा बडा फलदायी है। नवप्रसूता माताके लिए मेथीके लडू और डिंकके (गोंद) लडू बनाये जाते हैं उसमें बडी मात्रामें छुहारा मिलाया जाता है। खून बढानेके लिए खजूर और छुहारे बडे उपयोगी हैं।

    खुबानी- खुबानीका स्वाद मीठा लेकिन जरा जरा खट्टापन लिये होता है। बचपनमें किसीके घर जानेपर हमें खानेके लिए पकडाई जाती थी। तब टॉफी और चॉकलेटोंका चलन नही था। आजकल कभी कभार ही लोग घरोंमें खुबानी रखते हैं। उलटी रोकनेके लिए यह बडी कारगर है। गीले रसीले खुबानीके फलोंसे मेरा परिचय काफी समय बाद हुआ, जब मैं ट्रेनिंगके लिए मसूरी आई। लेकिन खुबानी फलका सीझन बहुत छोटा होता है। अधिकतर लोग इसे सूखे मेवे - ड्रायफ्रूटके रुपमें ही जानते हैं। लेकिन भोजनके बाद अब भी मैं अक्सर खुबानी खा लेती हूँ। पकवानोमें इसे डलते हुए मैंने नही देखा है। ही खुद प्रयोग किया है।

    अंजीर - अंजीरको भी खुबानीकी तरक एक ड्रायफ्रुटके तौरपर ही लोग जानते हैं। लेकिन महाराष्ट्रमें इसके फल मैंने बहुत खाए। इसका सीझन भी बहुत कम और पैदावार भी कम ही होती है। इसमें वह हल्कासा खट्टापन भी नही होता जो खुबानीमें होता है। फिर भी इसे पकवानोंमें नही डाला जाता। हाँ, पिछले कुछ वर्षोमें अंजीर-बर्फी और अंजीर-आइस्क्रीम जैसे नितान्त स्वादिष्ट पदार्थ मार्केटमें गए है।

    अनारदाना- मिठाईयोंमें तो नही, लेकिन चटखारे लेनेवाले नमकीन पदार्थोमें अनारदाना विशेष महत्व रखता है। भारतीय व्यंजनोंमे खटाईके लिए इमली, नींबू, आमला, दही, आमचूर, कमरक, और आमसूलका प्रयोग होता है। इनमें से हरेककी अपनी अपनी जगह है। अनारदानेका महत्व यह है कि यह खानेमें अपने अनोखे स्वादके साथ जरासी खटासका स्वाद देता है। पराठेमें साबुत या आधे कुटे हुए अनारदाने उसे स्वादिष्ट बनाते है। जीरा-चावल,  दही-चावल में भी अनारदाना पडता है। पके हुए ताजे अनारके दाने सॅलडमें बीट, टमाटर, ककडी, मूली आदिके छोटे टुकडोंके साथ डाले जा सकते हैं। यही बात अनन्नासके टुकडोंपर भी लागू है।

    बोरकूट- महाराष्ट्र में कई नमकीन पदार्थो में स्वाद के लिए बोरकूट डाला जाता है। इसे देसी बेरों को सुखाकर और कूटकर बनाया जाता है। आयुर्वेद में बेर के जो स्वास्थ्यकर लक्षण बताये हैं उसमें बेर को मीठै, खट्टे और कसैले स्वादसे युक्त होना चाहिए। इस कसौटी पर बनारसी बेर या जलगांव जिले के मशहूर मेहरुणी बेर नही उतरते क्योंकि वे केवल मीठे-कसैले स्वादवाले होत हैं, उनमें खट्टा रस नहीं होता। बेर का खट्टा और कसैला रस पेट के लिए अच्छे पाचक का काम करता है। इसे खास तौर पर नमकीनों मे डाला जाता है।
    बोरकूट को ठीक तरह से सावधानी पूर्वक बनाया जाय तो वह जल्दी खराब हो जाता है। दूसरी तरफ नमकीनों में आजकल सिंथेटीक खटाई - अधिकतर साइट्रिक ऍसिड डालनेका सरल तरीका चल निकला है। इसीसे बोरकूट अब पीछे रह गया है। लेकिन गाँव देहात में कोई कुशल महिला अब भी आपको बोरकूट डाला चाट मसाला खिला सकती है।
          
    लौंग- तेज, तीखी लौंग खाँसी के लिए, गलेकी दूसरी बिमारीयों के लिए और मसूढे के दर्द को कम करने की कारगर दवा है। मुँह में पडे अन्नकण सडने से जो दुगंध आती है, उसके लिये लौंग और मतली या उलटी से बचना हो तो भी लौंग। मैंने इसे इर तरह के पकवान में डालकर देखा है। मीठे चावल, लडू, सूजीका हलुआ, नमकीन या खाला कचौरी, पुरणपोली वगैरा, वगैरा।

    धनियां के बीज- धनिया के बीज अत्यंत ठण्डे और गरम दोनों विपाक वाले होते धनिया बीज का फल उसके उपयोग पर निर्भर है। छौंक में, गरम मसालों में, नमकीन पदार्थोमें इसका विपाक गरम हैं। लकिन पानीमें भिगोये रखने पर इनका विपाक अत्यंत ठण्डा होता है। किडनी के लिए यह बडा असरदार है। पानीमें भिगो देने पर इससे बहुमूत्रता आती है। जो किडनी के इन्फेक्शन को रोकने में मददगार साबिन होती है। मिठाइयों मे धनिया के बीज नही पडते। लेकिन धनिया की दाल बनाकर इसे खाने के बाद पेश करने का रिवाज गुजरात में बहुलता से है। इसे पानमें भी डालते हैं।
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